उरई (जालौन)। हर घर नल से जल जैसी अति महत्वपूर्ण योजना जिला मुख्यालय के समीपस्थ गांव मुहम्मदाबाद में जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते लूट का जरिया बन चुकी है। हैरानी की बात तो यह है कि गांव में जो ठेकेदार कार्य करा रहा था उसने अभी तक कार्य भी पूरा नहीं किया। जिससे ग्रामीणों के घरों में पानी पहुंचाने का संकल्प प्रदेश सरकार का सपना बनकर ही रह गया। कर्तव्यों को ताक पर रखकर कार्य करने के आदी हो चुके अधिकारी इस मामले में हाल फिलहाल कुछ भी कहने से बचते नजर आ रहे हैं। उक्त संबंध में जिलाधिकारी को शिकायती पत्र भी दिया था।
ग्राम प्रधान भगवानदास ने बताया कि गांव के मोहल्ले फजलगंज, अहिरवार बस्ती, गौशाला और पूर्व माध्यमिक विद्यालय तक पाइप लाइन बिछाने का कोई कार्य अब तक नहीं कराया गया। दूसरी ओर एक वर्ष से लगभग दस स्थानों पर पाइप लाइन लीकेज से पानी बर्बाद हो रहा है। ग्राम प्रधान का कहना था कि चूंकि अभी तक परियोजना का लोकार्पण भी नहीं हुआ और बिछायी गयी घटिया पाइप लाइनों से जगह-जगह लीकेज होने से पाइप लाइन की गुणवत्ता खुद ही संदेह के घेरे में है। इसके बाद भी जल निगम ग्रामीण के उरई खंड के अधिशासी अभियंता एके गुप्ता ने ग्राम पंचायत के प्रधान व सचिव को फरमान भेज दिया कि वह योजना को हस्तगत कर लें। इस बात को लेकर एक्सईएन निरंतर दबाब बनाने में जुटे हुये है। ऐसी स्थिति में यदि ग्राम पंचायत में परियोजना को हस्तांतरण कर लिया तो जिन गलियों में पाइप लाइन अब तक नहीं बिछायी गयी वहां पर कौन पाइप लाइन बिछायेगा इस बात का उत्तर जल निगम के अधिकारी नहीं दे रहे हैं। ग्राम प्रधान का कहना है कि वह आधी अधूरी परियोजना को किसी कीमत पर हस्तांतरण में नहीं लंेगे। ग्राम प्रधान का कहना है कि ग्रामीणों में भी इस बात को लेकर आक्रोश है कि उनके मोहल्ले में अब तक पाइप लाइन को नहीं डाला गया है। ग्राम प्रधान ने स्पष्ट किया कि जल निगम के एक्सईएन के दबाब आ गये तो फिर जिन मोहल्लों में जलापूर्ति के लिये कोई पाइप लाइन ही नहीं बिछायी गयी वहां के लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिये वह नहीं छोड़ सकते हैं। उनके लिये समूचा गांव एक समान है। ग्राम प्रधान ने उक्त मामले में जिलाधिकारी को पिछले दिनों एक शिकायती पत्र देते हुये जल निगम के एक्सईएन के झूठ का खुलासा करते हुये नमामि गंगे योजना में समूचे गांव की गलियों में पाइप लाइन बिछाये जाने की मांग की है। यदि जल निगम के जिम्मेदार अधिकारी ऐसा नहीं करते तो वह किसी भी कीमत पर परियोजना को हस्तगत नहीं करेंगे।