जिन दलों के तुम झंडाबरदार बनकर ज़िंदाबाद मुरादाबाद करते हो,चुनाव के समय जातियों में बंटकर वोट कर देते हो,वह पैगासस,अड़ानी और राहुल गांधी के बयान पर संसद ठप कर देते हैं।
हाँ वही संसद जिसकी कार्यवाही में प्रति मिनट ढाई लाख रुपया खर्च होता है जो तुम्हारी ही जेब से निकाला जाता है।
मौसम की मार से फसलें बर्बाद हो रही हैं लेकिन संसद में अड़ानी ही अड़े हुए हैं क्यों?
क्योंकि संसद में जो हैं उन्हें पता है कि तुम कितना भी चिल्लाओ अपनी बदहाली पर,लेकिन वोट,शराब,पैसा और जातिवाद पर ही करोगे। किसान कभी भी किसान के तौर पर वोट बैंक नहीं बन पाया और लोकतन्त्र में वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही विमर्श तय होते है।
सियासत अभी एक और शिगूफ़ा छेड़ रही है जातिगत जनगणना का,यानि तुम्हें और अधिक महीन धागों में बाँटने के मंसूबे के साथ ताकि तुम्हारे एका की सारी सम्भावनाएँ ही ध्वस्त कर दी जाएँ।
तुम पाले रहे अपने उत्थान के सपने, लेकिन हाल वही होगा कि दो के झगड़े में हिस्सा तीसरा पंच ही ले उड़ेगा,तुम सिर्फ़ दांत किट किटाना बस।
हर दल का नेता तुम्हारी इस कमजोरी से वाक़िफ़ हैं इसीलिए तुम्हें अपनी सुरक्षित फसल समझकर दूसरे मुद्दों पर केन्द्रित रखता है,उसे पता है कि तुमसे कोई भी ख़तरा नहीं,तुम वहीं स्थिर हो,शराब,पैसा और जातिवाद पर।
तुम्हें डर लगता है जनप्रतिनिधि से प्रश्न करने में कि कहीं वह नाराज़ न हो जाए हमसे।
खेती प्रधान देश में विमर्श का मुख्य मुद्दा किसान क्यों नहीं बनता उसका कारण सिर्फ़ इतना है कि किसान का मोह ताश के फड़ पर बाज़ी पूरी करने पर ज़्यादा होता है अपने हक़ की आवाज़ उठाने की अपेक्षा।
फसल बर्बाद हुई है,अब सर्वे की बात होगी और कुछ दिन बाद मामला शांत।
तहसील वाले रिपोर्ट ओके भेज देंगे और बीमा कम्पनी पल्ला यह कहकर झाड़ लेगी कि नुक़सान का प्रतिशत कम है।
जब तक तुम्हारे यह अवगुण दूर नहीं होते,विश्वास रखो तुम मुद्दा कभी नहीं बनने वाले सियासत का।
बात कड़वी है,परन्तु 100% सत्य है और अपने को भी इसी में कहीं न कहीं शामिल मानता हूँ।
किसान की सामूहिक चेतना जब तक निखालिस किसान के तौर पर नहीं जागती,तब तक उसका भला हो पाना नामुमकिन है।