वो इक्कीस महीने की तानाशाही का दौर

25 जून 1975 की वह सुबह जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय दिल्ली में ही थे,उनके फ़ोन की घंटी बजती है और दूसरी तरफ़ से आर के धवन की आवाज़ गूंजती है कि प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने आपको तुरंत तलब किया है।

राय जब प्रधानमंत्री आवास पहुँचते हैं तो श्रीमती गांधी बैठी थी और सामने टेबुल पर रखी ख़ुफ़िया रिपोर्ट से सम्बंधित फ़ाइलों को पलटते हुए बोली कि पूरे देश में विपरीत परिस्थितियाँ हैं और गुजरात और बिहार की सरकार को बर्खास्त किया जा चुका है। विपक्ष की हर बात नहीं मानी जा सकती है हमें कुछ कड़े फ़ैसले लेने होंगे।

चूँकि सिद्धार्थ शंकर राय क़ानूनी जानकार थे सो इस पर गांधी उनसे सलाह लेना चाहती थी जबकि अपने क़ानून मंत्री को इसकी कोई खबर तक नहीं दी गई थी। सिद्धार्थ शंकर राय ने कुछ समय लेकर भारत के संविधान के साथ अमेरिकी संविधान के पन्ने पलटकर बताया कि धारा 352 के तहत वह आपातकाल लगा सकती हैं लेकिन गांधी ने कहा कि वह इस बात को मंत्रीमंडल के समक्ष नहीं बताना चाहती है। इस पर राय का जवाब था कि राष्ट्रपति महोदय से यह कहकर साइन करवाया जाए कि बैठक बुलाने का समय नहीं है।

रात में ही राष्ट्रपति के दश्तखत करावाकर आपातकाल का एलान कर दिया गया और लिस्ट तैयार कर गिरफ़्तारियों का दौर शुरु हुआ। जेपी सहित सारे विरोधियों को उठवा लिया गया,जयपुर और ग्वालियर की महारानियों की गिरफ़्तारी की गई वह भी राजनैतिक तौर पर नहीं बल्कि धन की हेराफेरी का अपराध लगाकर ।

प्रेस पर रोक लगा दी गई,उनकी बिजली काट दी गई और हर उस स्वर को बंद करने का ताण्डव मचाया गया जो इंदिरा और कॉंग्रेस के विरोध में मुखर था।

वैसे आपातकाल लगाने के कई कारण गिनाए गए लेकिन असल कारण जो था वह यह था कि चुनावी हेराफेरी के मामले में कोर्ट ने श्रीमती गांधी का चुनाव रद कर दिया था।और जय प्रकाश नारायण भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलन चला रहे थे।

इक्कीस महीनों की तानाशाही के दौर के बाद जब चुनाव हुए तो बहुत करारी हार का सामना करना पड़ श्रीमती गांधी को।

कॉंग्रेस के नेता आज जो भाषण देते हैं संविधान को बचाने,अभिव्यक्ति की आज़ादी दबाने की बात करते हैं,उन्हें अपने अतीत में झांकने की ज़रूरत है और याद रखना चाहिए कि पब्लिक सब जानती है और मूक रहकर सब देखती है साथ ही समय आने पर समुचित जवाब भी देना जानती है।

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