बुंदेलखंड की लोक परम्पराए कितने हद तक बची है कितनी विलुप्त होती जा रही है

बुंदेलखंड का अतीत बहुत ही गौरवान्वित करने वाला है। सतयुग से लेकर अभी तक श्री कृष्ण के जाने के बाद से आज तक जितना साहित्य बुंदेलखंड में रचा गया है शायद कही रचा गया हो। सतयुग में जब पृथ्वी का सृजन हो रहा था। प्रथम अवतार मत्स्य अवतार के बाद जब दूसरा अवतार पृथ्वी पर कच्छ अवतार

हुआ या उसे हम समुद्रमंथन भी कहते है,  तथा उसके बाद जो तीसरा अवतार पृथ्वी पर वराह अवतार हुआ वह खास तौर पर बुंदेलखंड के लिए ही हुआ है। बुंदेलखंड में एक जगह है दतिया जहां “सनक सनंदन सनातन और सनतकुमार” ब्रम्हा के औरस पुत्र थे। उन्होंने तपस्या की इन्दरगढ तहसील में सिंध नदी के किनारे। तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर पूछा तुम चाहते क्या हो ?  तब ओरस पुत्रों ने कहा हम बच्चे ही बने रहे ज्यादा बड़े न हो ये बात का जिक्र हिन्दू ग्रन्थ पदम् पुराण में आई है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी इसका जिक्र राम चरित्र मानस में किया है।

“देख खनंद बालक बहु कालीना, परमानन्द मगन रह लीना”

श्रीमद भगवद गीता के 37 -38 अध्याय में। एक दिन वो चारो बच्चे नंग धडंग विष्णु के दरबार में चले गए जहाँ विष्णु के दरबारी जय-विजय ने उन्हें रोक लिया जब उन बच्चों ने कहा की हम तो बच्चे है हम तो कही भी आ और जा सकते है तो उन बच्चों ने जय विजय को श्राप दे दिया की तीन जन्म तक

द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥

बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥

तीन जन्म तक वचन प्रमाना मुखत न हते भगवाना

उन बच्चों ने भगवान को भी डाटा की तुमने अपने नौकरों को इतनी छूट दे रखी है जोहमे रोक रहे है तब जय और विजय के तीन जन्म हुए। जय और विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में जन्मे। जिनकी राजधानी गरौठा तहसील बेतवा किनारें एरच क़स्बा जहाँ से होली का त्यौहार शुरू हुआ उनकी बहन होलिका कनक कसेव हातिक लोचन सुर विरोध परपुर मध् पोचन पहलाद का चाचा हिरण्याक्ष जब प्रथ्वी को समुद्र में ले गया और गंदगी का कोट बना दिया बराह का नाम पर ही बुंदेलखंड नाम पड़ा।

दर बराह नतु एक विपाता होय नरहरिदुसर मारा जन पहलाद स्वास्थ्य प्रसतारा

अगर हम बुंदेलखंड की बात करे तो दुनिया का पहला राजा हिरण्यकश्यप है। हिरण्यकश्यप ने विष्णु से तपस्या करके एक वरदान मांगा “भगवान ब्रह्मा के बनाये हुए किसी भी प्राणी से उसकी मृत्यु न हो सके अर्थात ना मनुष्य से तथा ना ही पशु से, ना दैत्य से तथा ना ही देवताओं से, ना ही सर्प से तथा ना ही गन्धर्व से उसकी मृत्यु हो सके। इसके साथ ही वह ना ही अपने महल के भीतर मर सकता है तथा ना ही अपने महल के बाहर, ना उसे कोई दिन में मार सकता है तथा ना ही रात्रि में, ना ही अस्त्र से उसकी मृत्यु संभव हो सके तथा ना ही शस्त्र से, ना ही पृथ्वी पर उसकी मृत्यु हो तथा ना ही आकाश में।

साथ ही उसने यह वरदान माँगा कि ब्रह्मा के द्वारा बनाया गया कोई भी प्राणी उसकी शक्ति का सामना न कर सके व वह सभी का राजा बने, उसने स्वयं को इंद्र

आदि देवताओं से ऊपर बनाने तथा भगवान ब्रह्मा के समान शक्तिशाली होने का वरदान माँगा था।”

 

जब भक्त पहलाद को हिरण्यकश्यप ने ज्यादा परेशान किया और कई तरह से प्रताड़ित किया उसमे से एक  तब एरच के पास एक दिकौली गाँव है उसका श्रीमद् भागवत में डेकाचल पर्वत नाम है जब पहलाद को फेका जहाँ पहलाद दोह आज भी स्थित है जब पुरातन विभाग के द्वारा 1975 में खुदाई की तब वहां एक मूर्ति निकली जिसमे होलिका पहलाद को गोद में लिए हुए थे और एरच के पास एक गाँव है खमा जहाँ पहलाद को विष्णु भगवान का नाम लेने से मना करने पर गर्म लोहे से बांधा था आज ऐसा कहा जाता है यह गाँव रांड के सामान हो .,

 

भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध और नरसिंहवतार से हिरण्यकशिपु का वध किया। जब हिरनकश्यप का पुत्र पहलाद विष्णु का भक्त हो गया तो हिरनकश्यप ने हिरन्यक्ष्य के वध से नाराज था जिससे उसे सताने लगा और फिर नरसिंह अवतार लेकर हिरनकश्यप का वध कर दिया

बुंदेलखंड में पहला वराह का अवतार 2 नरसिंह का अवतार।

 

पाचवा अवतार हुआ वामन अवतार में राजा वली से 3 पग भूमि मांगकर उनका राज्य छीना जब बुंदेलखंड में दिवारि खेली जाति मुनिया तब उसमे एक गायन किया जाता है जब बह्रोचन की पत्नी सटी हो रही थी तब उससे किसी ने कहा तुम सती क्यों हो रही हो तुम्हारे बेटे के सामने तीनों लोगों का मालिक भिखारी बन कर आने वाला है।

भली भई से ना जइ, बेरोचन के साथ मेरे सूत के सामने हरी पसारे हाथ

इसका सार यह निकला की बुंदेलखंड के लिए भगवान ने 3 अवतार लिए

दूसरे जन्म में दोनों रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्मे और राम अवतार के हाथों मारे गए। तीसरे जन्म में वो दोनों शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे और श्री कृष्ण अवतार के हाथों मारे गए और अंततः उन्हें शाप से मुक्ति मिल गई।

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