ध्यानचंद की हॉकी के आगे हिटलर ने भी घुटने टेके

मेजर तिवारी की प्रेरणा से हॉकी की शुरुआत करने वाले ध्यानचंद को शायद ही यह भान रहा होगा कि यही हॉकी की स्टिक उनके जीवन को बुलंदियों की सैर कराने की वाहक बनने जा रही है।

जैसे जैसे ध्यानचंद की हॉकी का जादू रंग ला रहा था,उसी अनुक्रम में सेना में लगातार पदोन्नति मिल रही थी। यूँ कहें कि यह सारा चमत्कार उस स्टिक का ही था जिसे हॉकी नाम से जाना जाता है तो कोई भी अतिशयोक्ति न होगी।

एक साधारण सैनिक से आर्मी में अपना सफ़र शुरु करने वाले ध्यानचंद का सफ़र मानो फ़ौज और हॉकी के खेल में समानांतर गति से आगे बढ़ रहा था और इसी सफ़र का आख़िरी पड़ाव मेजर के पद तक पहुँचा।

कई मर्तबा तो इनकी हॉकी पर संदेह व्यक्त किया गया कि इसमें कोई चुम्बक या कोई गोंद जैसा पदार्थ लगा है अन्यथा ऐसा कैसे सम्भव है कि एक बाद स्टिक से गेंद के मिलन के बाद बिछोह ही न हो!

यहाँ तक कि इनकी स्टिक को तोड़कर भी देखा गया। लेकिन करिश्मा उस छड़ी का नहीं मेजर की खेल प्रतिभा का था, मानो किसी ग्रह का गुरुत्व उतर आता हो हॉकी में!

जिस ध्यानचंद को हम मेजर ध्यानचंद के नाम से जानते हैं,आपको शायद ही जानकारी हो कि बचपन में खेल की तरफ़ उनका कोई भी रुझान न था,लेकिन यह यात्रा परवान चढ़ी उनके फ़ौज में भर्ती होने के साथ। और फिर उसके बाद ध्यानचंद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

एक समय तो ऐसा भी आया कि अडोल्फ़ हिटलर जैसे ज़िद्दी और तानाशाह को भी मेजर की जादूगरी भरे करिश्माई खेल का मजबूरन क़ायल होना पड़ा और उसने जर्मन की ओर से खेलने का प्रस्ताव भी दिया।

लेकिन ध्यानचंद जिस माटी से बने थे,जो लहू उनकी रंगों में दौड़ रहा था,उसके कण कण में वंदे मातरम की अनुगूँज समाहित थी,सो इनकार कर दिया उन्होंने। लेकिन खेद इस बात का कि न जाने कितने टुटपुँजिए चाटुकारों को भारत रत्न की संस्तुति मिली,लेकिन यह व्यक्तित्व जिसने भारत का वास्तव में मान बढ़ाया,आज तक इस सम्मान से वंचित है।

साथ ही एक बात और कि पश्चिम से तुलना कर गौरवान्वित महसूस करने का सिलसिला आज भी मिटाया नहीं जा सका इस देश की मानसिकता से, शारीरिक ग़ुलामी ज़ंजीर टूटते ही तत्क्षण मिट जाती हैं लेकिन मानसिक ग़ुलामी को समाप्त करना दुष्कर काम है!
हम आज भी पेले या ब्रेडमेन से तुलनात्मक आँकलन कर महत्व आंकते हैं आपने मान बिन्दुओं का।जो खुद को एहसास-ए-कमतरी के नकार से भर देता है।

खैर,आज का दिन है उस जादूगर के नाम,जिस दिन को खेल दिवस के रूप में भी जाना जाता है। सो इस करिश्माई और प्रणम्य व्यक्तित्व को नमन????

प० राजू शर्मा नौटा 

 

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