देवी मां के मंदिरों को विशेष श्रृंखला में नवरात्रि के दूसरे दिन एक और रहस्यमयी मंदिर की कहानी लेकर आए हैं। यह ही विशेष मंदिर है, यहाँ देवी मां को एक हो प्रतिमा स्थापित है लेकिन यह दिन के तीनों पहर में अलग-अलग स्वरूप बदलती है। हो सकता है कि यह पड़कर हैरानी हो लेकिन सच यही है। भक्तजन मां के इस मंदिर में बदलते स्वरूपों का दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इनकों लोग लहर की देवी का मंदिर के नाम से जानते हैं। झांसी महानगर में स्थित सीपरी में स्थापित लहर की देवी मंदिर का निर्माण बुंदेलखंड के शक्तिशाली चंदेल राज के समय हुआ। प्राचीन काल में जेजाक भुक्ति प्रदेश के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश के राजा परमाल देव थे। राजा के दो भाई थे, जिन्हें आल्हा -उदल के रूप मैं जाता था। महोबा की रानी मछला को पथरीगढ़ का राजा ज्वाला सिंह अपहरण कर लेगा था। रानी को वापस लाने व राजा ज्वाला सिंह से पार पाने के लिए आल्हा ने इसी मंदिर में अपने भाई दल के सामने अपने पुत्र इन्दल की बलि चढ़ा दी थी माता ने प्रसन्न होकर इन्दल को पुनः जीवित कर दिया था। इसके पश्चात माता के प्रति लोगों की आस्था काफी बढ़ गई। आल्हा ने जिस पत्थ पर पुत्र की बलि दी थी वो आज भी मंदिर परिसर में सुरक्षित है।
‘मनिया देवी’ के रूप में भी पूजती हैं मां
लहर की देवी को ‘मनिया देवी’ के रूप में भी जाना जाता है। जानकारों का कहना है कि मनिया देवी मैहर की मां शारदा की है। यह मंदिर शिलास्तंभों पर खड़ा हुआ है। प्रत्येक स्तंभ पर आठ योगिनी अंकित है। इस प्रकार कुल चौसठ योगिनी के स्तंभों पर मंदिर टिका है। सभी गहरे लाल सिंदूरी रंग में रहे है। मंदिर परिसर में भगवान शंकर शीतला माता अन्नपूर्णा माता भगवान हनुमानजी और काल भैरव का भी मंदिर है।
बदलता है मां का रूप, कहलाई लहर की देवी
लहर की देवी की प्रतिमा दिन में तीन बार रूप बदलती है। प्रांत में में दोपहर में युवावस्था में और सायंकाल में देवी मां प्रौढ अवस्था में नजर आती है। तीनों की मां का अलग- अलग श्रृंगार किया जाता है। उल्लेखनीय है कि कालांतर में पड़ नदी का पानी पूरे क्षेत्र में पहुंच जाता था। नदी की लहरे माता के चरणों को स्पर्श करती ही इसलिए इसका नाम ‘लहर की देवी पड़ गया। मंदिर में विराजमान देवी चालिक है इसलिए यहाँ अनेकतान्त्रिक क्रियाएं भी होती है। यू तो यहां वर्षभर श्रद्धालुओं का लगा रहता है। लेकिन नवरात्रि में विशेष भीड़ होती है। नवरात्रि की अष्टमी को रात्रि में भव्य आरती का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस आरती में शामिल होने से भक्तों की सभी कामनाएं पूरी हो जाती है।