झांसी। एक ओर भारत शिक्षा की सीढ़ी चढ़कर विकसित होना चाहता है वहीं दूसरी और कुछ ऐसे कारनामे सामने आ जाते है जिससे कई क्षेत्रों में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण विषय बन जाती है और ऐसा ही एक कारनामा जिला झाँसी के ब्लॉक मऊरानीपुर के मदर्वास नामक ग्राम से आया है। जहां गणतंत्र दिवस जैसे महत्त्वपूर्ण दिन भी वहाँ के शिक्षक अनुपस्थित रहे कोई भी शिक्षक ऐसे मुख्य दिन पर भी ध्वजारोहण के लिए विद्यालय भी नहीं आया।
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को निम्न स्तर पर पहुंचाने का पूरा श्रेय सरकारी अध्यापकों को जाता हैं। सरकारी स्कूलों की इतनी दयनीय स्थिति की उन्हें शब्दों में कहना बड़ा मुश्किल है व्यवस्थायें तो इतनी दयनीय है कि उनका आंकलन करना भी संभव नहीं है। शिक्षा के गिरे स्तर की सबको जानकारी है ऊपर से लेकर नीचे तक कहीं कहीं तो बंदर बांट भी बढ़िया तरीके से किया जा रहा है। भारत में फूल माला पहने और साल ओढ़ने की परंपरा अभी चर्म पर है इसलिए उच्च अधिकारियों को कभी उससे फुर्सत ही नही मिलती। आप विचार करिए की इन्होंने शुद्ध अंतःकरण से अपने कार्य का निर्वाहन करने की शपथ ली थी अगर भूल गए है तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कीजिए।
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यदि ग्रामीण क्षेत्रों मे ऐसा ही चलता रहा तो ग्रामीण इलाके कभी भी विकास की राह पर नहीं चल पाएंगे और ना ही हमारी संस्कृति का विकास हो पायेगा यदि 70 हजार से 80 हजार रुपये तक की तनख्वाह पाने वाले सरकारी शिक्षक अपने ऐश-ओ-आराम के लिए शिक्षा की बलि देते रहे तो एक दिन यही छात्र-छात्राएं जो देश का भविष्य है वहीं अपने सपनों के साथ धूमिल होकर रेत हो जाएंगे।
गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा और विकास को खाने का श्रेय ऐसे लोगों को जाता हैं मदर्वास के ग्राम के लोगों ने बताया की प्रधान कहता है की शिक्षा या विद्यालय को संभालना हमारे कार्य नहीं है अब विचार करिए इस प्रकार के नेता या प्रधान कितने अनपढ़ होंगे जो ये भूल जाते हैं की आप गांव के प्रथम व्यक्ति होकर भी गांव की समस्याओं का निदान नहीं कर पाते और उन समस्याओं से अधिकारियों को अवगत नहीं करा पाते है।