भारत में असम के बाद झांसी में दूसरा कामख्या देवी का मंदिर जाने क्या है इतिहास

मुगलों से जान बचाने के लिए पहाड़ी से कूदीं थी ‘कैमासन’

देवी मां की विशेष श्रखंला में नवरात्रि में एक बड़े आस्था का केंद्र की अविस्मरणीय जानकारी लाए हैं बुंदेलखंड विश्वविद्यालय अपने शिक्षा के लिए पूरे क्षेत्र में जाना ही जाता है लेकिन विश्वविद्यालय के पीछे स्थित पहाड़ी पर बना एक मंदिर भी यहां के लोगों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र है।इस मंदिर का नाम कैमासन मंदिर है जो कि झांसी की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 176 सीढ़ी चढ़नी पडती हैं।

ऊंची पहाड़ी पर मंदिर होने से पूरे शहर को देखा जा सकता है। मंदिर की प्रसिद्धि और लोगों की आस्था का आलम कुछ ऐसा है की लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद था तब भी मंदिर के दरवाजे आने वाले भक्तों के लिए खुले थे

महोबा के राजा ने बनवाया मंदिर

सन 1120 महोबा के राजा परमार चंदेल जब शिकार खेलने आए तो उन्हें इस पहाड़ी और दोनों बहनों की कहानी के बारे में लोगों के द्वारा बताने पर मालूम हुआ तो राजा ने कैमासन की याद में मंदिर बनवाने का निर्णय किया यहां माता कामाख्या की मूर्ति रखी गई है। असम के अलावा सिर्फ झांसी में ही कामाख्या देवी का मंदिर है। मंदिर के लिए 176 सीढ़ी चढ़ कर जाना पड़ता है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि बहुत से भक्तगण तो रोजाना यहां पर आते हैं। एक समय में यह तंत्र पूजा का विशेष स्थान रहा है। मंदिर में विशाल विजयदीप स्तभ पर आज भी भक्तगण दीप प्रज्ज्वलित करते है। नवरात्र पर कैमासान मंदिर में भक्तो का तांता लगा रहता है। इन दिनों यहां मेला भरा हुआ है। मनोकामनाएं मांगने के लिए यहां अन्य राज्यों से भी भक्तगण आते हैं।

मुगलों से बचने के लिए कैमासन ने की थी आत्महत्या |

इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी है। इतिहासकार बताते है कि मुगलों के जमाने में झांसी के एक गांव में दो बहने रहती थी जिनका नाम कैमासन और मैमासन था, दोनों बहनें बहुत ही ज्यादा सुंदर थी। जिसके चर्चे बहुत दूर दूर तक थे।मुगलों को जब इनके बारे में पता चला उन्होंने उन्हें बंधक बनाने का निर्णय लिया। लेकिन खुद की आबरू और जान बचाने के लिए दोनों बहनें पहाड़ की ओर भागी। जब उन्हें लगा की अब मुगलों के सिपाहियों से बच पाना मुश्किल है तो दोनों बहनों ने झांसी की अलग-अलग पहाड़ी से कूद कर अपनी जान दे दी थी।

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