महोबा- मदन सागर सरोवर के बीचोंबीच स्थित खखरामठ वक्त के चलते खंडहर में तब्दील हो गया है। एक हजार पुरानी यह चंदेली विरासत कहने को पुरातत्व विभाग की संरक्षित इमारत है। यह बात अलग है कि वास्तु शिल्प की इस अनोखी कृति को बचाने के लिए विभाग के पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। एक जमाना था जब आल्हा ऊदल की इस बैठक को देखने को सात समंदर पार के विदेशी भी खिंचे चले आते थे। हालात बदले और खखरामठ खंडहर हो गया।
कोई एक हजार वर्ष पूर्व चंदेली राजा मदन वर्मन ने मदन सागर का निर्माण कराया। इसके बीच में स्थित है खखरामठ। वास्तु शिल्प की दृष्टि से बेहद उत्कृष्ट इस इमारत को उस समय आल्हा ऊदल के मंत्रणा कक्ष के रूप में उपयोग किया जाता था। ग्रेनाइट पत्थरों पर गजब की नक्काशी के साथ ही पूरी इमारत को पत्थरों के खांचों में फंसा कर तामीर किया जाना इसकी विशेषता थी। सदियों तक हजारों पारखी आंखें इस इमारत के जोड़ तलाशते थक जाती थी। 80 के दशक तक यह उत्कृष्ट कलाकृति देशी विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रही है। सात समुंदर पार के हजारों सैलानी हर साल इसे देखने आते थे। यही वजह है कि पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया। दुर्भाग्य कि सूची में एक नाम और दर्ज करने के अलावा विभाग इसे बचाने की दिशा में कुछ भी नहीं कर सका। संरक्षण व देखरेख के अभाव में इस अनोखी कृति का दो तिहाई हिस्सा ढह चुका है। वक्त के थपेड़े खाकर इमारत से गिरे नक्काशीदार पत्थर उसी के इर्द गिर्द पड़े है। विभाग चाहता तो उनकी नक्काशी मिला उन्हें यथा स्थान रखवा इमारत का क्षरण रोक सकता था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। कई इतिहासकारों का मानना है कि अब पुनः स्थापित करना बड़ा ही मुश्किल का विषय बन गया है लेकिन जिलाधिकारी महोबा ने उसे बेहद खास तरीके खखरा मठ को सैलानियों को लुभाने के लिए मदनसागर ताल मे नौका विहार शुरुआत करके नगर वासियों और बाहर से आये सैलानियों को एक बेहद महत्वपूर्ण तौफा दिया है।
इतिहासकार वासुदेव चौरसिया, साहित्यकार रामदत्त तिवारी और आल्हा पर शोध कर रहे शरद तिवारी दाऊ कहते है कि खखरा मठ और सूर्य मंदिर के साथ महोबा का गौरवशाली अतीत भी मिटता जा रहा है.