एक समय की बात है कि स्वामी विवेकानंद अपने अजरों में वेदों के पाठ कर रहे थे, तभी उनके पास चार ब्राह्मण आए वे बड़े व्याकुल थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह किसी प्रश्न का हल ढूंढने के लिए परिश्रम कर रहे हैं।
चारों ब्राह्मणों ने स्वामी जी को प्रणाम किया और कहा – स्वामी जी! हम बड़े दुगले हैं, आपसे अपनी समस्या का हल जानना बेहद ज़रूरी है। हमारी स्वाभाव को शांत करें स्वामी जी ने नुकसान पहुंचाया और जानना चाहा कैसा स्वाभाव ? कैसा प्रश्न है आपका ?ब्राह्मण बोले गए महात्मा हम चारों ओर वेद – वेदों की शिक्षा ग्रहण की है। हम सभी समाज में अलग-अलग दिशाओं में परिक्रमा कर समाज को अपने ज्ञान से सुखी, समृद्ध और समृद्ध देखना चाहते हैं।इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करें !
स्वामी जी के मुख पर रोशनी सी मुस्कान आई और उन्होंने ब्राह्मण को कहा -ब्राह्मण है ! आप सभी यह सब लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए आपको सामूहिक समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना होगा ब्राह्मण देवता शिक्षा से हमारा लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकता है ?स्वामी जी जिस प्रकार से संयंत्र को प्लांट को सुंदर बनाते हैं, ठीक उसी प्रकार शिक्षा द्वारा समाज का उत्थान संभव है।
शिक्षा व्यक्ति में समझ पैदा करता है, उन्हें जीवन के लिए जीव बनाता है। व्यवहार्य से होने में मदद शिक्षा करती है, सभी अभावों को दूर करने का मार्ग शिक्षा आई है। यह सभी प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वयं समृद्ध हो जाता है।
ब्राह्मण देवता को अब स्वामी विवेकानंद जी का विचार बड़े ही अच्छे तरीके से समझ में आ गया था।अब उन्होंने मिलकर प्रण लिया कि वे अपनी शिक्षा का प्रचार-प्रसार समाज में करेंगे यही उनकी समाज सेवा होगी।