पुण्यतिथि-: स्वर कोकिला लता मंगेशकर के किस गीत को सुनकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी रो दिए

स्वर कोकिला के नाम से मशहूर लता मंगेशकर की दूसरी पुण्यतिथि है। उन्होंने पुरे जीवन काल में 50 हजार से ज्यादा गाने गाए थे। इन पुरे गानों को 30 से ज्यादा भाषाओं में गाने का रिकार्ड भी लता दीदी के नाम है। उनके गानों की गूंज भारत समेत विदेशों तक थी।

5 साल की उम्र में म्यूजिक ट्रेनिंग लेना शुरू किया
5 साल की लता दीदी को सुर में गाता देख पिता ने संगीत सिखाने का फैसला किया था। पिता उन्हें रोज 6 बजे उठाकर संगीत सिखाना शुरू कर देते थे। 9 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला स्टेज परफॉर्मेंस दिया था। परफॉर्मेंस के बाद पिता वो पिता की ही गोद में सो गई थीं।

सफलता के जलन में किसी ने जहर दिया, 3 महीने बेड पर रहीं
33 साल की उम्र में लता दीदी स्वर कोकिला बन चुकी थीं। किसी को उनकी तरक्की से इतनी जलन थी कि उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की। ये उनकी जिंदगी का सबसे कठिन और भयानक दौर था। इस वजह से उन्हें 3 महीने तक बेड पर रहना पड़ा। शरीर इस कदर कमजोर हो गया था कि वो बेड से उठ भी नहीं पाती थीं, चलना तो दूर की बात थी। उनके इस कठिन समय में कवि मजरूह सुल्तानपुरी उनका सहारा बने। मजरूह दिनभर अपना काम करके शाम को उनके पास जाकर कविताएं सुनाया करते थे और उनका मन बहलाया करते थे।

अपने इस कठिन समय को याद करते हुए लता दीदी ने एक बार कहा था- अगर मजरूह इस मुश्किल वक्त में मेरे साथ ना होते, तो शायद मैं इस मुश्किल दौर से ना उबर पाती। अफवाह यह भी थी कि इस हादसे की वजह से उन्होंने अपनी आवाज खो दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इस बात का खंडन करते हुए कहा था- मैंने अपनी आवाज कभी नहीं खोई थी।

लता दीदी का गीत सुनकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी रो दिए
लता दीदी की आवाज में वो दर्द था, जिसे सुनकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी खुद को रोने से रोक नहीं पाए। यह घटना तब की है जब 1962 में चीन के हमले के बाद पूरे देश में हताशा का भाव फैला हुआ था। इसी दौरान 26 जनवरी 1963 को लता दीदी से गुजारिश की गई कि वो ‘ए मेरे वतन के लोगों’ गाने को अपनी आवाज दें। समय कम था, लेकिन इसके बावजूद वो इसके लिए राजी हो गईं।

फ्लाइट में ही टेप रिकॉर्डर पर इसे थोड़ा-थोड़ा सुनकर प्रैक्टिस की। जब उन्होंने इसे गाने को अपने मधुर आवाज में पिरोया तो सामने बैठे पंडित जी समेत सभी अतिथियों की आंखें नम हो गईं।

जब गाना खत्म हुआ तो महबूब खान लता दीदी के पास गए और कहा- लता, पंडित जी तुम्हें बुला रहे हैं। इसके बाद लता दीदी की मुलाकात पंडित जी समेत इंदिरा गांधी और कई अन्य राजनेता से हुई।

पंडित जी ने उनसे कहा- बेटी तुमने आज मुझे रुला दिया, मैं घर जा रहा हूं, तुम भी साथ आओ और मेरे घर पर चाय पियो। लता दीदी उनके साथ घर चली गईं। वहां वो एक कोने में जाकर बैठ गईं, तभी इंदिरा गांधी आईं और बोलीं- मुझे आपको दो लोगों से मिलाना है, जो सही अर्थों में आपके कद्रदान हैं। वो आपसे मिलकर बेहद खुश होंगे। फिर वो अपने दो बेटों राजीव और संजय के साथ लौटीं और बोलीं- ये आपके बड़े फैन हैं।

1959 और 1973 में जीता पहला फिल्मफेयर और नेशनल अवॉर्ड
1943 में लता दीदी ने पहला हिंदी गाना गाया था। मराठी फिल्म गाजाभाऊ के गाने ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू’ को अपनी आवाज दी थी। 1945 से उन्होंने उस्ताद अमन अली खान से क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। 1948 में उन्हें पहला मेजर ब्रेक फिल्म मजबूर के गाने ‘दिल मेरा तोड़ा’ से मिला था। 1949 में उनका पहला सुपरहिट गाना फिल्म महल का था, जिसके बोल थे- आएगा आनेवाला।

उन्होंने 1959 में फिल्म मधुमती (1958) के गीत ‘आजा रे परदेसी’ के लिए अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था। वहीं, 1973 में उन्हें फिल्म परिचय के गीत ‘बीती ना बिताई रैना’ के लिए पहला नेशनल अवॉर्ड मिला था।

सफेद साड़ी से रहा गहरा लगाव
लता दीदी को कॉटन की साड़ियां बेहद पसंद थीं। वहीं, वो रंग-बिरंगी साड़ियों की जगह सफेद साड़ी पहनना पसंद करती थीं। सफेद साड़ी पहनने पर उनका कहना था- मेरे व्यक्तित्व पर सफेद रंग सही ढंग से खिलता है और लोगों को भी शायद मैं सफेद साड़ी में ही ठीक लगती हूं।

एक किस्सा यह भी है कि एक बार मुंबई में तेज बारिश हो रही थी। लता दीदी को समझ नहीं आ रहा था कि वो रिकॉर्डिंग के लिए क्या पहनें। थोड़े के विचार के बाद उन्होंने क्रेप शिफॉन साड़ी पहनी, जो शायद पीले या ऑरेंज रंग की थी। फिर जब वो स्टूडियो पहुंचीं तब उनकी यह साड़ी देख रिकॉर्डिस्ट पूछ बैठा- ‘ये आप क्या पहनकर आ गईं?’

जवाब में लता दीदी ने कहा- इतनी बारिश में भीगती हुई आई हूं, क्रेप साड़ी पर पानी जल्दी सूख जाता है, लेकिन कॉटन में ऐसा नहीं होता इसलिए ये पहनना पड़ा।

इस पर रिकॉर्डिस्ट ने कहा- यह आप पर जंच नहीं रही है इस घटना के बाद लता दीदी को एहसास हो गया कि उन्हें लोग सिर्फ सफेद साड़ी में ही देखना पसंद करते हैं। ऐसे में उन्होंने रंग-बिरंगी साड़ियों से दूरी बना ली।

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