टहरौली में गाजर की खेती से खिलेंगे किसानों के चेहरे

इक्रीसैट परियोजना अंतर्गत विभिन्न गितिविधियों के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने का हो रहा प्रयास 

टहरौली (झांसी) बुंदेलखंड को सूखा प्रभावित माना जाता है, जिस कारण बुन्देलखण्ड से पलायन एक समय आम बात थी। जिसका प्रमुख कारण यहां कम वर्षा और पानी के संचयन का अभाव था। कुछ वर्षों से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जल संचयन पर कार्य हुआ है जिसका थोड़ा असर दिखने लगा है। जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह , क्षेत्रीय सांसद अनुराग शर्मा एवं राज्यमंत्री हरगोविंद कुशवाहा के प्रयासों से टहरौली क्षेत्र अंतर्गत 40 ग्रामों के लिये इक्रीसैट परियोजना लाई गई थी। 28 हजार हैक्टेयर में 32.47 करोड़ की लागत की इस योजना का प्रमुख उद्देश्य अधिक से अधिक वर्षा जल को संरक्षित करना है। जिससे सूखे क्षेत्र में जलस्तर बढ़ाया जा सके। साथ ही इस योजना का उद्देश्य तमाम गतिविधियों के माध्यम से किसानों की आय दोगुना करना भी है। इसी परियोजना अंतर्गत ग्राम नोटा, भड़ोखर, खिरिया, टहरौली, सुट्टा, सिंगार के 16 किसानों के लगभग 18 एकड़ खेत मे गाजर की खेती करवाई गई है।

टहरौली क्षेत्र में इस तकनीकी से पहली बार ऐसी खेती करवाई जा रही है जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। मशीन द्वारा छोटे बन्ध बना कर उनमें गाजर के बीज की बुआई की गई थी। आगे भी इक्रीसैट द्वारा प्राकृतिक संसाधन संरक्षण समिति के सहयोग से किसानों को तकनीकी जानकारी एवं सहयोग प्रदान किया जाता रहेगा। समय-समय पर किसानों को जानकारी एवं सुझाव और फसलों का निरीक्षण वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि यहां बड़े स्तर पर किसानों द्वारा गाजर का उत्पादन किया जाए और उन्हें साफ करवा कर कोल्ड स्टोरेज में रखवाने की व्यवस्था बना ली जाए तो किसानों की आय में कई गुना वृद्धि सम्भव है। प्रोजेक्ट हैड डॉ रमेश सिंह एवं ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ एम. एल. जाट के नेतृत्व में डॉ कौशल गर्ग, डॉ अन्नता, डॉ वेंकटराधा, डॉ अशोक शुक्ला, योगेश कुमार, शिशुवेन्द्र, सुनील, दीपक त्रिपाठी, ललित किशोर, विजय सिंह आदि वैज्ञानिकों, साइंटिफिक अधिकारी एवं साइट स्टाफ द्वारा गाजर की खेती पर नजर रखी जा रही है।

स्टेटमेंट –

बुंदेलखंड में यदि किसानों की आय दोगुना करना है तो परम्परागत खेती से इतर फसलों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही तकनीकी आधारित खेती किसानों की मेहनत, लागत और समय को कम करके बेहतर उपज उपलब्ध कराने में सहायक होती है।

डॉ रमेश सिंह (विभागध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक, इक्रीसैट, हैदराबाद)

इक्रीसैट परियोजना टहरौली क्षेत्र के किसानों के लिये एक अवसर के सामान है, जहां न केवल क्षेत्र के जलस्तर में वृद्धि होने जा रही है अपितु किसानों को अपनी आय बढ़ाने के तमाम अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। किसानों को भी इस योजना में भागीदार बनने की आवश्यकता है।

~ आशीष उपाध्याय

(अध्यक्ष, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण समिति, टहरौली)

 

रिपोर्ट अंकित गौतम टहरौली

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