बुंदेलखंड का एक ऐसा किला जहां भारतीय सेना का है कब्जा।

बोलेगा बुंदेलखंड और ASM न्यूज़ पर अब आप बुंदेलखंड के किस किले का इतिहास पढना और देखना चाहते है तो आज ही कमेंट माध्यम बताइए।

वैसे तो बुंदेलखंड को किलो की भूमि कहा जाता है बुंदेलखंड में अनेकों किले है लेकिन आज हम एक ऐसे किले की बात करने जा रहे है जिसपर भारतीय सेना ने अपने कब्जे में ले रखा है । बुन्देलखण्ड के महोबा जिले के अंतर्गत एक खूबसूरत नगरी है, चरखारी। बुंदेलखंड के इस किले की सुंदरता को इस तरह निखारा गया कि इसे बुंदेलखंड का कश्मीर कहा जाने लगा।

अगर उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ चाहे तो इस किले की मदद से बुंदेलखंड के पिछडे जिले महोबा के लिए भी रोजगार के द्वार खोल खुल सकते है। स्थानीय सांसद विधायक और जिलाध्यक्ष और स्थानीय लोगो के अथक प्रयास के बाद भी कुछ न हो सका कई बार आईटी की टीमें आई लेकिन सेना के कब्जा होने कारण कुछ न कर सके।

चंदेलों के गुजर जाने के सैकड़ों साल बाद राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज को मुंडिया पर्वत पर एक बीजक की सहायता से एक सोने का खजाना मिला जिसे उन्होंने कई तालाब,हजारों कन्यादान और एक किले का निर्माण कराया। जिसे मंगल द्वार के किले को निर्माण करते समय राजा जगतराज ने ही जमीन से तीन सौ फुट ऊपर चक्रव्यूह के आधार पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया | पौराणिक कथाओं और स्थानीय लोगो की माने तो कहा जाता है की जब राजा जगतराज को खजाना मिला तब माता लक्ष्मी ने उन्हें स्वप्न दिया और कहा था कि किले का निर्माण कार्य मंगलवार के दिन शुरू करना इसलिए इस किले को मंगलद्वार कहा जाता है

इस किले मे तीन दरवाजें हैं। सूपा द्वार- जिससे किले को रसद हथियार सप्लाई होते थे। ड्योढ़ी दरवाजा-और इसके अतिरिक्त एक हाथी चिघाड़ फाटक भी मौजूद था। राजा रानी के लिये आरक्षित था

इस किले के ऊपर एक साथ सात तालब मौजूद हैं- बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुण्ड, रामकुण्ड, चौपरा, महावीर कुण्ड, बख्त बिहारी कुण्ड। चरखारी किला अपनी अष्टधातु तोपों के लिये पूरे भारत में मशहूर रहा है। इसमें धरती धड़कन, काली सहाय, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, गर्भगिरावन तोपें अपने नाम के अनुसार अपनी भयावहता का अहसास कराती हैं। इस समय काली सहाय तोप बची है जिसकी मारक क्षमा 15 किमी है।जगतराज के पश्चात विजयबहादुर सिंहासन पर बैठे। साहित्य प्रेमी विजय बहादुर ने विक्रमविरुदावली की रचना की, मौदहा का किला और राजकीय अतिथिगृह- ताल कोठी का निर्माण कराया। यह कोठी एक झील में बनी है। बहुमंजिली यह कोठी अपनी रचना में नेपाल के किसी राजमहल का आभास देती है। इसकी गणना बुन्देलखण्ड की सर्वाधिक खुबसूरत इमारतों में की जाती है। विजय सागर नामक तालाब पर बनी ताल कोठी सरोवर के चहुंदिश फैली प्राकृतिक सुषमा के कारण अधिक आकर्षक प्रतीत होती है। इस समय यह किला आम लोगो के लिए इस किले को बंद कर दिया गया

इस विशाल दुर्ग की सुन्दरता को देखते हैं, जिसे आजकल आम आदमी के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है | वहाँ वर्षों से भारतीय फ़ौज का कब्ज़ा है | किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था। यह अनाज कई वर्षों तक खराब नहीं होता था ।

मलखान सिंह के पश्चात जुझार सिंह गद्दी पर बैठे। इनके बाद अरिमर्दन सिंह गद्दी पर आसीन हुए | महाराज अरिमर्दन सिंह ने नेपाल नरेश की पुत्री से विवाह किया और उनके लिये राव बाग महल का निर्माण कराया जिसमें चरखारी का राजपरिवार आज भी रहता है। अरिमर्दन सिंह के पश्चात जयेन्द्र सिंह शासक हुए। ये चरखारी के अन्तिम शासक थे। इसके पश्चात रियासत का विलय भारत संघ में हुआ। इस सबका जिक्र आल्हा ऊदल एवं बुन्देलखण्ड का इतिहास नामक पुस्तक में इस तरह मिलता है-

छत्रसाल, जगतेशुजू, कीरत, पृथ्वी, मान |

विजयबहादुर, रतनसिंह, जयसिंह अरु मलखान ||

बुंदेलखंड की बढ़ती बेरोजगारी पलायन को रोकने के लिए इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इस सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक चरखारी नगरी की तरफ सैलानियों को आकर्षित किया जाये | यदि इस कला और चक्रव्यूह नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया जाये तो राजकोष में करोड़ों रुपये की आमदनी के साथ साथ हजारों बेरोजगारों को रोजगार के द्वार मिल सकता है | इस सबके लिए जरूरी काम है वो है चरखारी के विशालकाय किले को पर्यटन के लिए खोलना होगा |

सेना का जो विशेष कार्य इस किले में होता है या तो उसे कहीं और स्थानांतरित किया जाना चाहिए या कुछ क्षेत्र में चलने दिया जाए | ताकि वहाँ के लोग एवं बाहर से आने वाले पर्यटक ओरछा, झाँसी के किलों की तरह इसे भी देख सकें | जो पर्यटक ओरछा और आते हैं वह रानी लक्ष्मीबाई की कर्मभूमि झांसी के कुछ स्थल, ओरछा का किला, रामलला का मंदिर एवं बेतवा नदी की सुन्दरता को निहारने के पश्चात सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | जबकि महोबा से चरखारी नगर मात्र २० किमी की दूरी पर है फिर भी पर्यटक महोबा से सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | खजुराहो ही उन सैलानियों का इस क्षेत्र का अंतिम पर्यटन स्थल होता है | जबकि महोबा के बाद देश दुनिया से आए सीधे पर्यटकों को चरखारी की तरफ जाना चाहिए |

जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता एवं प्राचीनतम कलाकृतियों, मंदिरों, तालाबों आदि की सुन्दरता का दीदार करना चाहिए | इसी कड़ी में महोबा नगर में बनाये गए चन्देल कालीन सात विशाल तालाब भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिएमजबूर करते हैं|

महोबा के निकट ही कबरई कस्बे में चन्देल काल में ही ब्रम्हा का बनाया गया ब्रह्मताल, जिसे अब बर्मा ताल के नाम से जानते हैं; यह भी कलाकृति का अद्भुत देखने योग्य स्थल है | इस तालाब के आस पास की जमीन को भी स्थानीय भू-माफिया कब्जाने में लगे हुए हैं | यदि इनको पुनः संवारकर विकसित किया जाए तो इस बात में बिल्कुल दोराय नहीं है कि सम्पूर्ण क्षेत्र पुनः खुशहाल हो उठेगा | किन्तु यह सब तभी संभव हो पायेगा जब प्रदेश एवं देश की सरकार इस दिशा में सार्थक कदम उठाते हुए, इस नगरी को एक वर्तमान पर्यटन स्थल का स्वरूप दे | देखने वाली बात यह कि सरकारें इस सौन्दर्य एवं राजसी स्मृतियों की गाथा को गाती नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का ऐतिहासिक कार्य करती है या फिर यूँ ही मिटा दिया जायेगा।

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